पाठ -11 कार्य, ऊर्जा और शक्ति
कार्य:- बल का उपयोग करके किसी वस्तु कीविरामावस्था में परिवर्तन करना ही कार्य कहलाता है
अथवा
गतिशील वस्तु की गति में परिवर्तन करना ही कार्य है।
कार्य =
- बल x बल की दिशा में विस्थापन
- कार्य एक अदिश राशि है।
- कार्य का का मान धनात्मक या धनात्मक हो सकता है।
- यदि बल या बल का घटक विस्थापन मी में हो तो कार्य धनात्मक होता है।
- कार्य का मात्रक - जूल
ऊर्जा ;-
- किसी वस्तु में कार्य करने की क्षमता को ही ऊर्जा कहते हैं।
- किसी वस्तु में विद्यमान ऊर्जा की माप इस पस्तु द्वारा किये जा सकने वाले कार्य से करते है।
- किसी भी कार्य को करने के लिए ऊर्जा की आवशयकता होती है।
- ऊर्जा का मात्रक भी जूल होता है।
ऊर्जा के प्रकार :- ऊर्जा विभिन्न रूप में विद्यमानी होती है।
सूर्य हमारे लिए ऊर्जा का सबसे बड़ा प्राकृतिक स्त्रोत है।
ऊर्जा के विभिन्न रूपों में से कुछ निम्न प्रकार है
(1) यांत्रिक ऊर्जा :- किसी पस्तु. की गति, स्थिति अथवा दोनों के कारण उसमें जो ऊर्जा होती है।, उसे यांत्रिक ऊर्जा कहते हैं।
(2 ) उष्मीय ऊर्जा :उष्मीय के कारण सूक्ष्मकणो द्वारा गतिमान ऊर्जा की उम्मीय ऊर्जा कहते हैं।
(3 )रासायनिक ऊर्जा:- रासायनिक क्रियाओं द्वारा प्राप्त ऊर्जा को रासायनिक, ऊर्जा कहते है। बैटरी, कोयला, रसोई गैस, भोजन भादि सभी रासायनिक ऊर्जा के उदाहरण है।
(4 ) विद्युत ऊर्जा :- विद्युत आवेशो द्वारा उत्पन्न ऊर्जा विधुत ऊर्जा कहलाती है। हम धरों में बिजली की जो भी भुक्तियाँ उपयोग में लेते हैं। वो विद्युत ऊर्मा से ही चलती है।
(5 )गुरुत्वीय ऊर्जा - वस्तुओं में गुरुत्वाकर्षण बल के कारण उत्पन्न ऊर्जा गुरुत्वीय ऊर्जा कहलाती है। इसी ऊर्जा के कारण सरनों व नदियों में पानी ऊपर से नीचे की ओर बहता है।
(6 )नाभिकीय ऊर्जा:- नाभिकीय विखण्डन एंव संलयन के परिणाम स्वरम्प प्राप्त ऊर्जा नाभिकीय ऊर्जा कहलाती है। सभी प्रकार. की ऊर्जा मुख्यत: दो रूपों में होती है।
- (1) गतिज ऊर्जा
- (2) स्थितिज ऊर्जा
गतिज ऊर्जा:- गति के कारण कार्य करने कि दर गतिज ऊजा कहलाती है। पेड़ से गिरता हुआ फल, नदी में बहता हुआ पानी, 3ड़ता हुआ हवाई जहाज, चलती हुई कार , उड़ता हुआ पक्षी आदि
- गतिज ऊर्जा सदेव धनात्मक होती है।
- वस्तु के द्रव्यमान एंव वेग पर निर्भर करती है।
- गतिज ऊर्जा वेग की दिशा पर निर्भर नहीं करती है।
स्थितिज ऊर्जा:- स्थिति के कारण कार्य करने कि दर स्थितिज ऊर्जा कहलाती है। रबर को खींचने, स्निंग को संपीडित करने अथवा खीचने एंव वस्तु को किसी ऊंचाई तक उठाने में कार्य किया जाता है।
विद्यत्त क्षेत्र:- आवेशित कणों के चारों ओर वह क्षेत्र जिसमें कोई अन्य आवेश आकर्षण या प्रतिकर्षण का अनुभव करता है। विद्युत क्षेत्र कहलाता है।
विद्युत संयंत्रो के प्रकार :
(1.) कोयला संयंत्र : इसमें कोयले के दहन से रासायनिक ऊर्जा को उष्मा के रज्य में प्राप्त किया जाता है। इस उष्मा से पानी को 'भाप में बदला जाता है। यह फीवान भाम टरबाइन को गति प्रदान करती है। इस टरबाइन से जुड़ी हुई जनित्र से विद्युत उत्पादन होता है।
(2.) नाभिकिय संयंत्र :- नाभिकीय संयंत्र में नाभिकीय विखन्डन से प्राप्त उप्मीय ऊर्जा से पानी को वाप्प में बदला जाता है। इस वाष्प द्वारा टरबाइन को घुमाया जाता है।
(3) जल विद्युत संयंत्र : जब विद्युत संयंत्रो में नाँध बनाकर पानी की ऊँचाई से गिराया जाता है। पानी की स्थितिज ऊर्जा को गतिज ऊर्जा में बदलकर टरबाइन की धुमाया जाता है। टरबाइन के धूमने पर उससे नई जनिन्न द्वारा विद्युत उत्पादन होता है।
(4 )पवन ऊर्जा संयंत्र : पवन चक्की में हवा की गतिज ऊर्जा से टरबाइन को धुमाकर जनिन्न द्वारा विद्युत उत्पादन किया जाता है। यह नवीकरणीय ऊर्जा स्तीन दुसरे ऊर्जा संयंती के मुकाबले में वातावरण के लिए हितकारी है।
(5). सौर उष्मा संयंत्र : सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को उनल लेंन्स या अवतल दर्पण की सहायता से केन्द्रित करके इसे उष्मा में बदला जाता है। इस उष्मा से भाप टरबाइन को घुमाया जाता है। जिससे विद्युत जनिन्न उत्पादन करता है।
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