अध्याय:- 4 प्रतिरक्षा एवं रक्त समूह(Immunity and Blood Group)
मानव शरीर हर दिन अनेक रोगों से ग्रसित होता है। परंतु फिर भी यह बड़ी आसानी से रोग ग्रस्त नहीं होता है। इसका प्रमुख कारण है कि मानव शरीर में रोगाणुओं से लड़ने हेतु उसमें प्रतिरक्षा तंत्र पाया जाता है। प्रताप रोगाणु से लड़ने के लिए हमारे शरीर में होने वाली क्रिया तथा संबंधित तंत्र के अध्ययन को प्रतिरक्षा तंत्र कहते हैं। प्रतिरक्षा तंत्र दो प्रकार का होता है
जैसे स्वाभाविक प्रतिरक्षा तंत्र, उपार्जित प्रतिरक्षा तंत्र।
प्रतिजन(Antigen):- प्रतिदिन बाहरी रोगाणु अथवा पदार्थ है जो शरीर में प्रविष्ट होने के पश्चात भी लसिका कोशिका को प्रतिरक्षी उत्पादक प्लाज्मा कोशिका में रूपांतरित कर प्रतिरक्षी उत्पादन हेतु प्रेरित करता है तथा वह विशिष्ट रूप से उस ही प्रतिरक्षी से अभिक्रिया करता है प्रतिजन कहलाता है।
प्रतिरक्षी(Antibody):- प्रतिरक्षी वह प्रोटीन होता है जो दे में उपस्थित B- लसीका कोशिका द्वारा किसी प्रतिजन से अभिक्रिया करके निर्मित होता है। तथा उस विशेष प्रतिजन से विशिष्ट रूप से संयोजित हो सकता है प्रतिजन कहलाती है।
रक्त व रक्त समूह(Blood and Blood Group)
रक्त:-एक तरल संयोजी उत्तक है रक्त गाड़ा चिपचिपा व लाल रंग का होता है।रक्त वाहिनी में प्रभावित होता है। रक्त प्लाज्मा तथा रक्त कणिकाओं से मिलकर बना होता है प्लाज्मा तीन प्रकार की होती है जेसे लाल रक्त कणिकाएं, श्वेत रक्त कणिकाएं तथा बिम्बाणु।रक्त समूह के सर्वप्रथम खोज लैंडस्टेनर ने 1901 में की थी तथा रक्त को विभिन्न समूह में वर्गीकरण किया था। रक्त के लाल रक्त कणिकाओं की सतह पर पाए जाने वाले विभिन्न प्रति जनों की उपस्थिति तथा अनुपस्थिति के आधार पर वर्गीकृत कर इसको विभिन्न समूहों में बांटा।
संपूर्ण नोट्स👇👇
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